वो दीवारें वो तकिया वो मेज वो कलम ने,
तेरे जाने के बाद, ग़र सहारा न दिया होता,
तो आज इस कागज़ के टुकड़े पर,
यूं एक नज़्म ने जन्म न लिया होता..
हर शब् में रोते रहने का, सबब न जानने वाले,
ये आंसू यूं बेघर न होते, अगर नासूर,
जो बन गया वोह ज़ख्म न दिया होता..
लोग यूं न मुझे दीवाना कहते, पागल समझते,
मेरी ज़िन्दगी में तेरे लौट आने का,
ग़र तूने भरम न दिया होता...